बिहार, जो कभी शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ेपन का पर्याय माना जाता था, अब एक नई दिशा की ओर अग्रसर है। नीतीश कुमार सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों और गैर-सरकारी संगठनों के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत देश और विदेश के अनुभवी शिक्षक बिहार के सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाएंगे। यह पहल न केवल राज्य की शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करेगी बल्कि बच्चों को वैश्विक स्तर की शिक्षा प्रदान करके उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाएगी। शिक्षा मंत्री सुनील कुमार और अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ की उपस्थिति में आयोजित इस कार्यक्रम ने बिहार की शिक्षा नीति में एक नया अध्याय जोड़ा है।
बिहार की शिक्षा व्यवस्था का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है। स्वतंत्रता के बाद से राज्य में शिक्षा का स्तर कम रहा, जहां साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफी नीचे थी। 2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद शिक्षा क्षेत्र में सुधार की शुरुआत हुई। बालिका साइकिल योजना, मिड-डे मील कार्यक्रम और शिक्षकों की भर्ती जैसे कदमों ने राज्य की शिक्षा को नई ऊर्जा दी। आज बिहार में सरकारी स्कूलों की संख्या लाखों में है, और छात्र-छात्राओं की संख्या देश में सबसे अधिक है। लेकिन चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं—शिक्षकों की कमी, बुनियादी ढांचे की कमी और गुणवत्ता में कमी। इन समस्याओं को दूर करने के लिए नीतीश सरकार ने शिक्षा पर राज्य बजट का 20 प्रतिशत से अधिक आवंटित किया है, जो उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
इस नए समझौते की बात करें तो यह प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के स्तर पर लागू होगा। समझौते के तहत विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थानों के साथ साझेदारी की गई है। हालांकि विशिष्ट संस्थाओं के नामों का अभी खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन सूत्रों के अनुसार ये संस्थान भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों जैसे आईआईटी, आईआईएम और विदेशी संस्थानों जैसे हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड या अन्य प्रमुख एनजीओ से जुड़े हो सकते हैं। इन संस्थानों के शिक्षक ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड में बिहार के बच्चों को पढ़ाएंगे। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों पर फोकस होगा, जहां डिजिटल क्लासरूम स्थापित किए जाएंगे। शिक्षक न केवल विषय-आधारित ज्ञान देंगे बल्कि जीवन कौशल, नवाचार और तकनीकी शिक्षा पर जोर देंगे।
शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने इस मौके पर कहा, “राज्य के कुल बजट का 20% से अधिक शिक्षा पर व्यय हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह साझेदारी न केवल शिक्षा तंत्र में नवाचार और तकनीक का संचार करेगी, बल्कि विद्यार्थियों के लिए अवसरों के नए द्वार भी खोलेगी।” उन्होंने बालिका साइकिल योजना का जिक्र करते हुए कहा कि इस योजना ने बालिकाओं की शिक्षा पहुंच को बढ़ाया है, और अब यह नई साझेदारी इसे और मजबूत करेगी। अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ ने जोड़ा, “बिहार में देश के सबसे अधिक छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं। उन्हें प्रतिस्पर्धी माहौल में आगे बढ़ने हेतु गुणवत्तापूर्ण संसाधन और मार्गदर्शन उपलब्ध कराना हमारी प्राथमिकता है। इन संगठनों का सहयोग इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।”
इस समझौते के लाभ अनेक हैं। सबसे पहले, यह बिहार के बच्चों को वैश्विक स्तर की शिक्षा प्रदान करेगा। देश-विदेश के शिक्षक अपने अनुभव साझा करके बच्चों को आधुनिक विषयों जैसे एआई, रोबोटिक्स, पर्यावरण विज्ञान और डिजिटल साक्षरता से परिचित कराएंगे। दूसरा, यह शिक्षकों की कमी को दूर करेगा। बिहार में लाखों शिक्षकों की भर्ती हो चुकी है, लेकिन गुणवत्ता में सुधार की जरूरत है। विदेशी शिक्षक स्थानीय शिक्षकों को ट्रेनिंग भी देंगे, जिससे समग्र शिक्षा स्तर ऊंचा होगा। तीसरा, यह ग्रामीण-शहरी विभेद को कम करेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में स्मार्ट क्लासेस और ऑनलाइन लेक्चर्स से बच्चे शहरों के समकक्ष शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे।
कार्यान्वयन की योजना भी ठोस है। समझौते के अनुसार, प्रत्येक एमओयू का प्रभाव जमीनी स्तर पर दिखाई देना चाहिए। इसके लिए नियमित मॉनिटरिंग और परिणाम-आधारित मूल्यांकन की व्यवस्था की जाएगी। प्रारंभिक चरण में पायलट प्रोजेक्ट कुछ जिलों में शुरू होंगे, जैसे पटना, मुजफ्फरपुर और भागलपुर। यहां डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाएगा, और शिक्षक वर्चुअल क्लासेस लेंगे। बाद में इसे पूरे राज्य में विस्तारित किया जाएगा। सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया है कि ये कार्यक्रम निःशुल्क होंगे, ताकि गरीब परिवारों के बच्चे भी लाभ उठा सकें।
हालांकि, चुनौतियां भी हैं। बिहार में इंटरनेट कनेक्टिविटी और बिजली की समस्या ग्रामीण क्षेत्रों में बाधा बन सकती है। इसके लिए सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश बढ़ाना होगा। साथ ही, भाषा की बाधा—विदेशी शिक्षक अंग्रेजी में पढ़ा सकते हैं, जबकि स्थानीय बच्चे हिंदी या स्थानीय भाषा में सहज हैं। इसके समाधान के लिए अनुवाद टूल्स और द्विभाषी कार्यक्रम अपनाए जा सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ठीक से लागू हुआ तो यह पहल बिहार को शिक्षा हब बना सकती है।
पिछले कुछ वर्षों में नीतीश सरकार ने शिक्षा में कई सुधार किए हैं। उदाहरण के लिए, स्मार्ट क्लासेस की स्थापना, जहां ब्लैकबोर्ड की जगह डिजिटल बोर्ड ने ली है। फेस रिकग्निशन से हाजिरी लगाने की प्रणाली शुरू हुई है, जो छात्रों और शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करती है। चेतना सत्र जैसे कार्यक्रम बच्चों में अनुशासन और प्रेरणा जगाते हैं। ये सभी प्रयास इस नए समझौते को मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
इस समझौते का व्यापक प्रभाव होगा। आर्थिक रूप से, शिक्षित युवा बिहार की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेंगे। सामाजिक रूप से, बालिकाओं की शिक्षा बढ़ने से लिंग समानता आएगी। राजनीतिक रूप से, यह नीतीश सरकार की उपलब्धि बनेगी, खासकर विधानसभा चुनावों के मद्देनजर। अन्य राज्य भी इस मॉडल को अपना सकते हैं।