उत्तर प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन
विधानसभा सदस्य एवं मंत्री सुख-सुविधा विधि (संशोधन) पारित किया गया, जिसके बाद विधायकों और मंत्रियों के वेतन-भत्तों में उल्लेखनीय इजाफा स्वीकृत हुआ। विपक्ष व सत्ता पक्ष—दोनों की रज़ामंदी के साथ यह फैसला पास हुआ, इसलिए यह विषय और भी चर्चा में है।
हाइलाइट्स
- विधायकों के पैकेज में ~41% और मंत्रियों के पैकेज में ~38% तक वृद्धि का प्रावधान।
- कई प्रमुख मद—मूल वेतन, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, वाहन भत्ता—में सीधी बढ़ोतरी।
- राज्य के बजट पर अतिरिक्त बोझ; कुछ यात्रा/पुरानी सुविधाओं में कटौती की बात भी शामिल।
किन-किन मदों में कितना बदलाव?
नए प्रावधानों के अनुसार प्रमुख मदों का सार नीचे दी गई तालिका में देखें। (राशियाँ रुपये में):
वेतन/भत्ता मद | पहले | अब |
---|---|---|
मूल वेतन | 25,000 | 35,000 |
निर्वाचन क्षेत्र भत्ता | 50,000 | 75,000 |
सचिवीय/टेलीफोन भत्ता | 1,500 | 2,000 |
वाहन भत्ता | 20,000 | 30,000 |
प्रतिदिन भत्ता | 3,000 | 4,500 |
टाइपिंग/स्टेशनरी | 6,000 | 9,000 |
नोट: ऊपर केवल प्रमुख मदों का संकेतात्मक सारांश है; वास्तविक कुल पैकेज में अन्य वैधानिक भत्ते/देयताएँ भी शामिल हो सकती हैं।
क्यों ज़रूरी बताई गई यह बढ़ोतरी?
- महंगाई का तर्क: सरकार का कहना है कि कई वर्षों बाद वास्तविक खर्च बढ़ने से भत्तों का पुनरीक्षण आवश्यक था।
- जनप्रतिनिधियों का कार्य-क्षेत्र: बड़े राज्य में यात्रा, जनसंपर्क और कार्यालय संचालन की लागत बढ़ने की वजह से मदवार संशोधन किया गया।
- प्रशासनिक पारदर्शिता: अलग-अलग मदों को स्पष्ट करने से ऑडिट और उत्तरदायित्व तय करना आसान होगा।
जनता क्या कह रही है?
सोशल मीडिया और पब्लिक डिबेट में दो तरह की राय दिख रही है—एक वर्ग इसे लोकतांत्रिक संस्थाओं को सुदृढ़ करने वाला कदम मानता है, जबकि दूसरा वर्ग सवाल उठाता है कि जब आम योजनाओं में कटौती/देरी होती है तो जनप्रतिनिधियों के भत्ते क्यों बढ़ाए जा रहे हैं।
राज्य के खजाने पर असर
बढ़ोतरी से वार्षिक व्यय में अतिरिक्त भार के संकेत मिलते हैं। सरकार ने यह भी कहा कि कुछ पुराने ट्रैवल/लॉजिंग लाभों और दावों के नियम कड़े कर खर्च संतुलित करने की कोशिश होगी। सटीक प्रभाव वित्त विभाग की विस्तृत अधिसूचना/GR में स्पष्ट होगा।
राजनीतिक सहमति: सब क्यों थे एकजुट?
यह प्रस्ताव बिना बड़े विरोध के पास हुआ। विशेषज्ञ कहते हैं कि जनप्रतिनिधियों के वेतन-भत्ते संसद/विधानसभाओं में अक्सर सर्वसम्मति से तय होते हैं। पर लोकतांत्रिक विमर्श के लिहाज़ से यह भी जरूरी है कि इन फैसलों की प्रक्रिया और तर्क सार्वजनिक दस्तावेज़ों में विस्तार से उपलब्ध हों।
आगे क्या?
- वित्त विभाग की अधिसूचना के बाद नए दरों का औपचारिक क्रियान्वयन होगा।
- ऑडिट/RTI के ज़रिये वार्षिक वास्तविक व्यय पर नज़र रखना संभव होगा।
- यदि लोकमत/विपक्ष में तीखी प्रतिक्रिया बढ़ी तो कुछ सहूलियतों में पुनर्संतुलन भी दिख सकता है।
FAQ: अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
क्या यह बढ़ोतरी तुरंत लागू हो जाएगी?
सामान्यत: बिल पास होने के बाद संबंधित अधिसूचना/नियमावली जारी होते ही नई दरें प्रभावी हो जाती हैं। कुछ घटकों का भुगतान प्रॉ-राटा/पीरियड-क्लोज़ के साथ होता है।
क्या इससे टैक्स-पेयर्स पर सीधा बोझ पड़ेगा?
राज्य के समेकित कोष से भुगतान होता है, इसलिए यह सार्वजनिक व्यय का हिस्सा है। प्रत्यक्ष करदाता पर अलग से कोई नया टैक्स घोषित नहीं है, पर कुल बजटीय आवंटन में यह अतिरिक्त मद जुड़ता है।
क्या पुराने ट्रैवल/अन्य लाभों में कटौती हुई है?
यात्रा/पास जैसी कुछ सुविधाओं के नियम कड़े/पुनरीक्षित करने के संकेत हैं ताकि कुल व्यय नियंत्रित रखा जा सके। अंतिम विवरण सरकारी अधिसूचना में स्पष्ट होगा।
क्या यह सिर्फ विधायकों पर लागू है?
संशोधन में विधानसभा सदस्य तथा मंत्रियों—दोनों के लिए वेतन-भत्तों का प्रावधान संशोधित किया गया है।